Monday, April 22, 2024

 


महाशिवरात्रि का सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक महत्व

-डॉ. सौरभ मालवीय

पर्व एवं त्योहार भारतीय संस्कृति की पहचान हैं। ये केवल हर्ष एवं उल्लास का माध्यम नहीं हैं, अपितु यह भारतीय संस्कृति के संवाहक भी हैं। इनके माध्यम से ही हमें अपनी गौरवशाली प्राचीन संस्कृति के संबंध में जानकारी प्राप्त होती है। महाशिवरात्रि भी संस्कृति के संवाहक का ऐसा ही एक बड़ा त्योहार है।   

शिवरात्रि प्रत्येक मास की अमावस्या से एक दिन पूर्व अर्थात कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है, जबकि महाशिवरात्रि वर्ष में एक बार आती है। यह फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। शिव पुराण की ईशान संहिता में कहा गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए थे-

फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि। शिवलिंगतयोद्भूत: कोटिसूर्यसमप्रभ:

माना जाता है कि इसी दिन प्रलय आएगा, जब प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तृतीय नेत्र की ज्वाला से नष्ट कर देंगे। इसीलिए शिवरात्रि को कालरात्रि भी कहा जाता है। 

सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्त्व

महाशिवरात्रि धार्मिक एवं सांस्कृतिक रूप से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। महाशिवरात्रि के सन्दर्भ में अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार अग्निलिंग के उदय के साथ इसी दिन सृष्टि प्रारंभ हुई थी। एक पौराणिक कथा के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर भगवान शिव सर्वप्रथम शिवलिंग के स्वरूप में प्रकट हुए थे। इसीलिए इस दिवस को भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के प्रकाट्य पर्व को प्रत्येक वर्ष महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।

एक अन्य कथा के अनुसार इस दिन भगवान शिव का देवी पार्वती के साथ विवाह सम्पन्न हुआ था। यह उनके विवाह की रात्रि है। उन्होंने वैराग्य त्याग कर गृहस्थ जीवन अ पना लिया था। एक पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने समुद्र मंथन के समय निकले कालकूट नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था। इससे उनका कंठ नीला हो गया था। इसीलिए उन्हें नीलकंठ नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि इस घातक  विष के कारण भगवान शिव को ताप चढ़ गया था। इसे उतारने के लिए उनके मस्तक पर बेल पत्र रखा गया, क्योंकि बेल पत्र शीतल गुण वाला होता है। इससे उन्हें संतुष्टि प्राप्त हुई। तभी से शिवलिंग पर बेल पत्र चढ़ाने की परंपरा आरंभ हुई। एक कथा के अनुसार इस रात्रि भगवान शिव ने संरक्षण एवं विनाश के नृत्य का सृजन किया था। इसलिए भी यह रात्रि विशेष है।

महाशिवरात्रि का वैज्ञानिक महत्त्व

महाशिवरात्रि का वैज्ञानिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्व है। माना जाता है कि इस रात्रि ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार अवस्थित होता है कि मानव की आंतरिक ऊर्जा प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर जाती है। मान्यता है कि यह ऊर्जा मनुष्य को आध्यात्मिक शिखर तक ले जाने में सहायक सिद्ध होती है। इसलिए इस रात्रि में भगवान शिव की पूजा- अर्चना करने का अत्यंत महत्त्व है। पूजा के समय भक्त सीधा बैठता है तथा उसकी रीढ़ की हड्डी सीधी होती है। इसके कारण उसकी ऊर्जा उसके मस्तिष्क की ओर जाती है। इससे उसे शारीरिक ही नहीं, अपितु मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति भी प्राप्त होती है। भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र ॐ नमः शिवाय है। यह मंत्र भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। इस मंत्र का संबंध पंच महाभूतों भूमि, गगन, वायु अग्नि एवं नीर से माना जाता है। इस मंत्र का निरंतर जाप करने से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है। इससे मनुष्य का आत्मबल बढ़ता है।   

धर्म ग्रंथों के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा- अर्चना करने से वे प्रसन्न होकर अपने भक्तों को मनचाहा वरदान देते हैं। शिवरात्रि का महोत्सव एक दिवस पूर्व ही प्रारंभ हो जाता है। भगवान शिव के मंदिरों में रात्रि भर पूजा-अर्चना की जाती है। भक्त रात्रिभर जागरण करते हैं एवं सूर्योदय के समय पवित्र स्थलों पर स्नान करते हैं। नदी तटों विशेष कर गंगा के तटों पर भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। स्नान के पश्चात भगवान शिव के मंदिरों में पूजा-अर्चना की जाती है। भक्त शिवलिंग की परिक्रमा करते हैं। तत्पश्चात भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है। शिवलिंग का जलाभिषेक अथवा दुग्धाभिषेक भी किया जाता है। शिवलिंग पर जल से जो अभिषेक जाता है, उसे जलाभिषेक कहा जाता है। इसी प्रकार शिवलिंग पर दुग्ध से जो अभिषेक किया जाता है, उसे दुग्धाभिषेक कहा जाता है। मधु से भी शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है। इसके अतिरिक्त शिवलिंग पर सिंदूर लगाया जाता है एवं सुगंधित धूप जलाई जाती है। दीपक भी जलाया जाता है। उस पर फल, अन्न एवं धन चढ़ाया जाता है। उस पर बेल पत्र एवं पान के पत्ते चढ़ाए जाते हैं। इनके अतिरिक्त वे वस्तुएं भी भगवान शिव को चढ़ाई जाती हैं, जो उन्हें प्रिय हैं। इनमें धतूरा एवं धतूरे के पुष्प सम्मिलित हैं। मुक्तिदायिनी गंगा के जल का भी विशेष महत्व है, क्योंकि गंगा देवलोक से सीधी भगवान शिव की जटा पर ही उतरी थी। इसके पश्चात ही वह पृथ्वी लोक में उतरी एवं प्रवाहित हुई। इसलिए सभी नदियों में गंगा का स्थान सर्वोपरि माना जाता है। भक्तजन महाशिवरात्रि के दिन उपवास भी रखते हैं। कुछ लोग निर्जल रहकर भी उपवास करते हैं। उपवास से तन एवं मन दोनों ही शुद्ध होते हैं। शुद्ध मन में ही तो भगवान वास करते हैं। कई स्थानों पर भगवान शिव की बारात भी निकाली जाती है। इसमें कलाकार शिव एवं पार्वती का रूप धारण करते हैं। बारात में सम्मलित लोग शरीर पर भस्म लगाए हुए होते हैं। वे नाचते गाते हुए शिव एवं पार्वती के रथ के पीछे चल रहे होते हैं। भक्तजन इसमें भाग लेते हैं।

महिलाओं के लिए विशेष है शिवरात्रि

शिवरात्रि का महिलाओं के लिए विशेष महत्व है। विवाहित महिलाएं व्रत रखकर अपने पति की दीर्घायु एवं सुखी जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं, जबकि अविवाहित युवतियां भगवान शिव से अपने लिए सुयोग्य वर मांगती हैं। भगवान शिव को आदर्श पति के रूप में माना जाता है। इसलिए युवतियां सुयोग्य वर के लिए सोलह सोमवार का व्रत भी करती हैं। मान्यता है कि सोलह सोमवार का व्रत करने से सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है।

भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग

महाशिवरात्रि पर ज्योतिर्लिंग पर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग हैं अर्थात प्रकाश के लिंग हैं। ये स्वयम्भू के रूप में जाने जाते हैं, जिसका अर्थ है स्वयं उत्पन्न। ये बारह स्थानों पर ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं इनमें उत्तराखंड में हिमालय का दुर्गम केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, उत्तर प्रदेश के ही काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, बिहार के बैद्यनाथ धाम में स्थापित शिवलिंग, गुजरात के काठियावाड़ में स्थापित सोमनाथ शिवलिंग, मध्यप्रदेश के उज्जैन के अवंति नगर में स्थापित महाकालेश्वर शिवलिंग, मध्यप्रदेश के ही ओंकारेश्वर में नर्मदा तट पर स्थापित ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग, गुजरात के द्वारकाधाम के निकट स्थापित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र की भीमा नदी के किनारे स्थापित भीमशंकर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र के नासिक के समीप त्र्यंम्बकेश्वर में स्थापित ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र के ही औरंगाबाद जिले में एलोरा गुफा के समीप वेसल गांव में स्थापित घुमेश्वर ज्योतिर्लिंग, चेन्नई में कृष्णा नदी के किनारे पर्वत पर स्थापित श्री शैल मल्लिकार्जुन शिवलिंग एवं चेन्नई में ही रामेश्वरम् त्रिचनापल्ली समुद्र तट पर भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग सम्मिलित हैं। शिवरात्रि एवं महाशिवरात्रि आर यहां भक्तजनों का तांता लग जाता है। वे ज्योतिर्लिंग के दर्शन करके आध्यात्मिक लाभ अर्थात पुण्य प्राप्त करते हैं।

पुराणों के अनुसार आध्यात्मिक जीवन की पूर्णता प्राप्त करने के लिए भगवान शिव के इन बारह ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने अति आवश्यक हैं। मान्यता है कि इन सभी बारह स्थानों पर भगवान शिव ने स्वयं प्रकट होकर दर्शन दिए थे। इसीलिए यहां ये ज्योतिर्लिंग उत्पन्न हुए हैं।

भारत के अतिरिक्त उन देशों में भी शिवरात्रि का पर्व हर्षोल्लास से मनाया जाता है, जहां हिन्दू लोग निवास करते हैं। भगवान शिव मोक्षदायिनी माने जाते हैं। इसलिए यह त्योहार भी मनुष्य को पुण्य कर्मों के माध्यम से मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है।

लेखक- लखनऊ विश्वविद्यालय में पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर है ।

 

 

 

भाजपा का संकल्प पत्र 2024


जनसाधारण को समर्पित है भाजपा का संकल्प पत्र   

-डॉ. सौरभ मालवीय 

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने व्यक्तित्व एवं कृत्तिव से भारतीय राजनीति में अपनी एक ऐसी पहचान स्थापित की है जिसका कोई अन्य उदाहरण दिखाई नहीं दे रहा है। उन्होंने भाजपा को निरंतर दस वर्ष केंद्र की सत्ता में बनाए रखा। भाजपा की प्राय: सभी पुरानी घोषणाओं विशेषकर अयोध्या में राम जन्मभूमि पर राम मंदिर का निर्माण, जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने, नागरिक संशोधन अधिनियम, तीन तलाक, लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को एक तिहाई सीटों पर आरक्षण देने आदि को पूर्ण करके यह सिद्ध कर दिया है कि भाजपा की कथनी एवं करनी में कोई अंतर नहीं है। इसीलिए भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2024 के घोषणा पत्र को ‘भाजपा का संकल्प मोदी की गारंटी 2024’ नाम से जारी किया है। इस संकल्प पत्र की एक विशेष बात यह भी है कि इसमें भाजपा ने जनता से कोई लुभावना वादा नहीं किया है। भाजपा का संपूर्ण ध्यान जनता को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाने एवं विकास पर है। इसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार एवं विकास पर विशेष बल दिया गया है। वास्तव में यह संकल्प पत्र युवाओं, महिलाओं, किसानों एवं निर्धन वर्ग पर केंद्रित है।

भाजपा द्वारा इस संकल्प पत्र में जनता को मोदी की गारंटी दी गई है। गरीब परिवारों की सेवा- मोदी की गारंटी, मध्यम-वर्ग परिवारों का विश्वास, नारी शक्ति का सशक्तिकरण, युवाओं को अवसर, वरिष्ठ नागरिकों को वरीयता, किसानों का सम्मान, मत्स्य पालक परिवारजनों की समृद्धि, श्रमिकों का सम्मान, एमएसएमई, छोटे व्यापारियों और विश्वकर्माओं का सशक्तिकरण, सबका साथ सबका विकास, विश्व बंधु भारत,  सुरक्षित भारत, समृद्ध भारत, ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनेगा भारत, विश्वस्तरीय इन्फ्रास्ट्रक्चर, ईज ऑफ लिविंग, विरासत भी विकास भी, सुशासन, स्वस्थ भारत, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, खेल के विकास, सभी क्षेत्रों के समग्र विकास, तकनीक एवं नवाचार तथा पर्यावरण अनुकूल भारत- मोदी की गारंटी सम्मिलित है।

इसमें दो मत नहीं है कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र ने भाजपा की वे पुरानी घोषणाओं को पूर्ण किया, जिन्हें पूर्व की सरकारों ने विवादास्पद बना रखा था। वे सरकारें इन विषयों को स्पर्श भी नहीं कर पा रही थीं। उन्हें लगता था कि ऐसा करने से उनका ‘वोट बैंक’ उनसे छिन जाएगा। शाहबानो प्रकरण में कांग्रेस पीड़ित वृद्ध महिला का साथ देने की बजाय उसके पति के साथ खड़ी हो गई। यद्यपि उसने अपनी वृद्ध पत्नी पर अत्याचार करते हुए उसे तीन तलाक देकर घर से निकाल दिया था। कट्टरपंथियों के दबाव में कांग्रेस झुक गई। परिणामस्वरूप तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संसद में विधेयक पास करवाकर शाहबानो जैसी महिलाओं के लिए समस्याएं खड़ी कर थीं। किन्तु यह श्री नरेंद्र मोदी का दृढ़ संकल्प ही था कि उन्होंने मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के अभिशाप से छुटकारा दिलाने के लिए कानून बनाया। उन्होंने ऐसे अनेक कड़े निर्णय लिए। वे किसी भी दबाव के आगे नहीं झुके. इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि श्री नरेंद्र मोदी जैसा मजबूत प्रधनामंत्री ही देश को आगे लेकर जा सकता है।

अभी देश में ‘समान नागरिक संहिता’ लागू करने का प्रकरण लंबित है। इस संकल्प पत्र के सुशासन की मोदी की गारंटी के द्वितीय बिंदु में कहा गया है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों के रूप में दर्ज की गई है। भाजपा का मानना है कि जब तक भारत में समान नागरिक संहिता को अपनाया नहीं जाता, तब तक महिलाओं को समान अधिकार नहीं मिल सकता। भाजपा सर्वश्रेष्ठ परंपराओं से प्रेरित समान नागरिक बनाने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसमें उन परंपराओं को आधुनिक समय की जरूरतों के मुताबिक ढाला जाए।

इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि यदि भाजपा को तृतीय बार केंद्र में सत्ता में आने का अवसर मिल जाता है तो वह अपने इन वादों को भी पूर्ण करेगी।                  

भाजपा ने कहा है कि हमारा सुशासन का मूल मंत्र है। हमने पिछले दशक में अपनी नीतियों, तकनीकी के उपयोग और सरल प्रक्रियाओं के माध्यम से देश में सुशासन के नए आयाम कायम किए हैं। हम नागरिक और सरकार के बीच संबंध को निरंतर बेहतर बनाने के लिए संस्थागत सुधार करते रहेंगे और तकनीकी के सही उपयोग से सभी प्रक्रियाओं को सरल बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे। 

इस संकल्प पत्र में मोदी के दस वर्ष के शासनकाल में हुए कार्यों का आंकड़ों के साथ उल्लेख किया गया है। यद्यपि कोई भी सरकार अपनी पिछले पांच वर्षों के कार्यकाल की उपलब्धियों का उल्लेख करती है, परंतु भाजपा ने दस वर्षों के कार्यों का उल्लेख किया है। भाजपा अपने चुनाव प्रचार में दस वर्ष की उपलब्धियों के आधार पर ही जनता से समर्थन मांग रही है।  

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि पिछले दस साल में हमने समय के हर पल को जनकल्याण के लिए समर्पित करने का प्रयास किया है। पिछले एक दशक में देश आमूलचूल बदलावों का साक्षी बना है। एक तरफ देश तेजी से प्रगति के पथ पर बढ़ा है तो वहीं देशवासियों के मन में भी एक सकारात्मक बदलाव हुआ है। बड़े लक्ष्य तय करके उसे हासिल करने की धारणा मजबूत हुई है। उन्होंने दावा किया कि पिछले दस साल में हम ‘फ्रेजाइल-5’  अर्थव्यवस्था से ‘टॉप-5 अर्थव्यवस्था’ बन चुके हैं। देश के अर्थतंत्र में हुए इस बदलाव का सबसे बड़ा लाभ उन देशवासियों को मिला है, जो वाकई जरूरतमंद हैं। इस बदलाव का सबसे बड़ा लाभ समाज के गरीब, वंचित और मध्यम वर्ग को मिला है। सबका साथ-सबका विकास, सबका विश्वास-सबका प्रयास केवल हमारा नारा ही नहीं, बल्कि हमारी प्रतिबद्धता है। 

उन्होंने कहा कि पिछले दस वर्षों में 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं। दशकों से बुनियादी जरूरतों की पूर्ति से वंचित रहे इन 25 करोड़ लोगों का जीवन स्तर बहुत बेहतर हुआ है। यह गरीबों के खिलाफ हमारी लड़ाई की जीत है। आज ऐसे लोगों तक न सिर्फ आवास, गैस कनेक्शन, शौचालय की सुविधाएं पहुंच रही हैं, बल्कि उससे कहीं आगे नए दौर के ऑप्टिक फाइबर कनेक्शन, डिजिटल समाधान और ड्रोन तकनीक इत्यादि भी इनके अपने हाथों में है।   

देश में पिछले 10 साल में हुए सामाजिक-आर्थिक बदलावों का लाभ हमारी महिला, किसान, मछुआरा समाज, रेहड़ी-पटरी वेंडर्स, छोटे कारोबारियों तथा एससी, एसटी और ओबीसी को मिला है। तकनीक के माध्यम से ये वर्ग लाभान्वित भी हो रहे हैं और सशक्त भी। जनधन-आधार-मोबाईल ट्रिनिटी के कारण इनका लाभांश सीधे इन्हें बिना किसी बिचौलिए के मिलना संभव हुआ है।

उन्होंने युवाओं का उल्लेख करते हुए कहा है कि देश के विकास में हमारी युवाशक्ति की भूमिका बहुत बड़ी है। भारत के युवा ने न सिर्फ बड़े सपने देखने की हिम्मत की है, बल्कि अन्तरिक्ष, खेल और स्टार्ट-अप जैसे विभिन्न क्षेत्रों में बड़े सपने साकार करने के लिए भी उत्कृष्ट कार्य किया है। पिछले दस वर्षों में चाहे शिक्षा हो, रोजगार हो या उद्यमिता हो, हमारे युवाओं के लिए करोड़ों नए अवसर पैदा हुए हैं।  

वर्ष 2014 में जब केंद्र में भाजपा की सरकार बनी थी, उसी समय भाजपा ने 2047 को अपना लक्ष्य बना लिया था। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि 2014 में हमें आपका आशीर्वाद और मिला समर्थन मिला तो हम इन बड़े बदलावों को कर पाए। 2019 में पहली बार से बड़ा जनादेश मिला तो विकास की गति और तेजी से आगे बढ़ी। बड़े-बड़े निर्णय लिए गये। आपका आशीर्वाद लेकर अगले पांच साल हम 24 घंटे 2047 के लिए संघर्ष करेंगे, ये मोदी की गारंटी है।     

वास्तव में भाजपा का यह संकल्प पत्र जन साधारण से जुड़ा हुआ है. इसलिए इसमें कही गई बातें लोगों को प्रभावित अवश्य करेंगी.    

लेखक- लखनऊ विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर है । 

मोबाइल – 8750820740

Wednesday, April 10, 2024

भारतीय नववर्ष उत्सव का उमंग



 

मन को हर्षित करता भारतीय नववर्ष 

-डॉ. सौरभ मालवीय

भारतीय नववर्ष के साथ अनेक त्यौहार आते हैं। इनमें चैत्र शुक्लादि, नवरेह, गुड़ी पड़वा, उगादि, साजिबु नोंगमा पांबा अथवा साजिबु चेराओबा एवं चेटीचंड आदि सम्मिलित हैं। चैत्र शुक्लादि विक्रम संवत के नववर्ष के प्रारम्भ का प्रतीक है। इसे वैदिक अथवा हिन्दू कैलेंडर के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन से नवरात्रि का प्रारम्भ होता है। भारतीय नववर्ष के साथ वसंत ऋतु का भी आगमन होता है। इसलिए ये सब त्यौहार वसंत के उत्सव हैं।

नवरेह

जम्मू कश्मीर में नवरेह का त्यौहार हर्ष एवं उल्लास से मनाया जाता है। नव चंद्रवर्ष के रूप में मनाया जाने वाला यह त्यौहार उत्साह एवं रंगों का उत्सव है। यह कश्मीरी पंडितों का विशेष त्यौहार माना जाता है। त्यौहार से एक दिन पूर्व वे पवित्र विचर नाग के झरने की यात्रा करते हैं। इसके पश्चात वे पवित्र जल में स्नान करके अपनी समस्त मलिनताओं का त्याग करते हैं। इसके पश्चात् वे पूजा-अर्चना करके प्रसाद ग्रहण करते हैं। यह प्रसाद चावल एवं विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियों से बनाया जाता है। नवरेह के प्रातःकाल में वे लोग सर्वप्रथम चावल से भरे पात्र को देखते हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से घर में समृद्धि आती है, क्योंकि चावल धन-धान्य एवं समृद्धि का प्रतीक है।

गुड़ी पड़वा

महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है। गुड़ी का अर्थ है विजय पताका तथा पड़वा का अर्थ है चंद्रमा का प्रथम दिवस। इस दिन लोग बांस के ऊपर चांदी, तांबे अथवा पीतल के कलश को उल्टा रखते हैं। कलश पर स्वास्तिक का चिह्न बनाया जाता है। बांस पर केसरिया रंग का पताका लगाया जाता है। तदुपरान्त इसे नीम एवं आम की पत्तियां और पुष्पों से सुसज्जित किया जाता है। इसे घर के सबसे उच्च स्थान पर लगाया जाता है। गृह द्वारों पर आम के पत्तों का तोरण लगाया जाता है। मान्यता है कि आम के पत्ते पवित्र होते हैं। इसके लगाने से नकारात्मक शक्तियां घर में प्रवेश नहीं कर पाती हैं तथा घर इनसे सुरक्षित रहता है।  

इस दिन भोजन में गुड़ एवं नीम परोसा जाता है। गुड़ की मिठास सुख एवं नीम की कड़वाहट दुःख का प्रतीक है अर्थात जीवन के सुख- दुःख को समान भाव से अपनाना चाहिए, क्योंकि मानव की परीक्षा दुःख में ही होती है।   

देश के विभिन्न भागों में इसे भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। गुड़ी पड़वा गोवा में संवत्सर पड़वा के रूप में मनाया जाता है। केरल में इसे संवत्सर पड़वो के रूप में मनाया जाता है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक एवं तमिलनाडु सहित दक्षिण भारत के कई क्षेत्रों में इसे उगादी के रूप में मनाया जाता है। राजस्थान में इसे थापना एवं मणिपुर में साजिबु चेराओबा अथवा साजिबु नोंगमा पांबा के रूप में मनाया जाता है।

सिन्धी समुदाय के लोग चेटीचंड का त्यौहार हर्षोल्लास से मनाते हैं। यह त्यौहार भगवान झूलेलाल के जन्म दिवस के रूप में जाना जाता है। उनका जन्म पाकिस्तान के सिंध प्रांत के ग्राम नसरपुर में हुआ था। उनका वास्तविक नाम उदयचंद था। वे वरुण देव के अवतार माने जाते हैं। उन्हें उदेरोलाल, घोड़ेवारो, जिन्दपीर, लालसाँई, पल्लेवारो, ज्योतिनवारो, अमरलाल आदि नामों से भी जाना जाता है। वह सद्भावना के प्रतीक माने जाते हैं।

विक्रम सम्वत् का इतिहास

9 अप्रैल से विक्रम सम्वत् 2081 का प्रारम्भ चुका है। विक्रम सम्वत् को नव संवत्सर भी कहा जाता है। संवत्सर पांच प्रकार के होते हैं, जिनमें सौर, चन्द्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास सम्मिलित हैं। मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ एवं मीन नामक बारह राशियां सूर्य वर्ष के महीने हैं। सूर्य का वर्ष 365 दिन का होता है। इसका प्रारम्भ सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने से होता है।  चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, अग्रहायण, पौष, माघ और फाल्गुन

 चन्द्र वर्ष के महीने हैं। चन्द्र वर्ष 355 दिन का होता है। इस प्रकार इन दोनों वर्षों में दस दिन का अंतर हो जाता है। चन्द्र माह के बढ़े हुए दिनों को ही अधिमास या मलमास कहा जाता है। नक्षत्र माह 27 दिन का होता है, जिन्हें अश्विन नक्षत्र, भरणी नक्षत्र, कृत्तिका नक्षत्र, रोहिणी नक्षत्र, मृगशिरा नक्षत्र, आर्द्रा नक्षत्र, पुनर्वसु नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, आश्लेषा नक्षत्र, मघा नक्षत्र, पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, हस्त नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र, स्वाति नक्षत्र, विशाखा नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र, ज्येष्ठा नक्षत्र, मूल नक्षत्र, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र, घनिष्ठा नक्षत्र, शतभिषा नक्षत्र, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, रेवती नक्षत्र कहा जाता है। सावन वर्ष में 360 दिन होते हैं। इसका एक महीना 30 दिन का होता है।     

विक्रम सम्वत् का महत्त्व

भारतीय संस्कृति में विक्रम सम्वत् का बहुत महत्त्व है। चैत्र का महीना भारतीय कैलेंडर के हिसाब से वर्ष का प्रथम महीना है। नवीन संवत्सर के संबंध में अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। वैदिक पुराण एवं शास्त्रों के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि को आदिशक्ति प्रकट हुई थीं। आदिशक्ति के आदेश पर ब्रह्मा ने सृष्टि की प्रारम्भ की थी। इसीलिए इस दिन को अनादिकाल से नववर्ष के रूप में जाना जाता है। मान्यता यह भी है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। इसी दिन सतयुग का प्रारम्भ हुआ था। मान्यता है कि इसी दिन सम्राट विक्रमादित्य ने अपना राज्य स्थापित किया था। श्रीराम का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। नवरात्र भी इसी दिन से प्रारम्भ होते हैं। इसी तिथि को राजा विक्रमादित्य ने शकों पर विजय प्राप्त की थी। विजय को चिर स्थायी बनाने के लिए उन्होंने विक्रम सम्वत् का शुभारंभ किया था, तभी से विक्रम सम्वत् चली आ रही है। इसी दिन से महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और वर्ष की गणना करके पंचांग की रचना की थी। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक महत्त्व भी है। स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की थी। इस दिन महर्षि गौतम जयंती मनाई जाती है। इस दिन संघ संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्मदिवस भी मनाया जाता है।

उत्कृष्ट काल गणना

सृष्टि की सर्वाधिक उत्कृष्ट काल गणना का श्रीगणेश भारतीय ऋषियों ने अति प्राचीन काल से ही कर दिया था। तदनुसार हमारे सौरमंडल की आयु लगभग चार अरब 32 करोड़ वर्ष हैं। आधुनिक विज्ञान भी कार्बन डेटिंग और हॉफ लाइफ पीरियड की सहायता से इसे लगभग चार अरब वर्ष पुराना मान रहा है। इतना ही नहीं, श्रीमद्भागवद पुराण, श्री मारकंडेय पुराण और ब्रह्म पुराण के अनुसार अभिशेत् बाराह कल्प चल रहा है और एक कल्प में एक हजार चतुरयुग होते हैं। जिस दिन सृष्टि का प्रारम्भ हुआ, वह आज ही का पवित्र दिन था। इसी कारण मदुराई के परम पावन शक्तिपीठ मीनाक्षी देवी के मंदिर में चैत्र पर्व मनाने की परंपरा बन गई। नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों की भीड़ लगी रहती है।

महीनों का नामकरण

भारतीय महीनों का नामकरण भी बड़ा रोचक है अर्थात जिस महीने की पूर्णिमा जिस नक्षत्र में पड़ती है, उसी के नाम पर उस महीने का नामकरण किया गया है, उदाहरण के लिए इस महीने की पूर्णिमा चित्रा नक्षत्र में हैं, इसलिए इसे चैत्र महीने का नाम दिया गया। क्रांति वृत पर 12 महीने की सीमाएं तय करने के लिए आकाश में 30-30 अंश के 12 भाग किए गए और उनके नाम भी तारा मंडलों की आकृतियों के आधार पर रखे गए। इस प्रकार बारह राशियां बनीं।

चूंकि सूर्य क्रांति मंडल के ठीक केंद्र में नहीं हैं, अत: कोणों के निकट धरती सूर्य की प्रदक्षिणा 28 दिन में कर लेती है और जब अधिक भाग वाले पक्ष में 32 दिन लगते हैं। इसलिए प्रति तीन वर्ष में एक मास अधिक हो जाता है।

काल गणना की वैज्ञानिक व्यवस्था

भारतीय काल गणना इतनी वैज्ञानिक व्यवस्था है कि शताब्दियों तक एक क्षण का भी अंतर नहीं पड़ता, जबकि पश्चिमी काल गणना में वर्ष के 365.2422 दिन को 30 और 31 के हिसाब से 12 महीनों में विभक्त करते हैं। इस प्रकार प्रत्येक चार वर्ष में फरवरी महीने को लीप ईयर घोषित कर देते हैं। तब भी नौ मिनट 11 सेकेंड का समय बच जाता है, तो प्रत्येक चार सौ वर्षों में भी एक दिन बढ़ाना पड़ता है, तब भी पूर्णाकन नहीं हो पाता। अभी कुछ वर्ष पूर्व ही पेरिस के अंतर्राष्ट्रीय परमाणु घड़ी को एक सेकेंड धीमा कर दिया गया। फिर भी 22 सेकेंड का समय अधिक चल रहा है। यह पेरिस की वही प्रयोगशाला है, जहां के सीजीएस सिस्टम से संसार भर के सारे मानक तय किए जाते हैं। रोमन कैलेंडर में तो पहले 10 ही महीने होते थे। किंगनुमापाजुलियस ने 355 दिनों का ही वर्ष माना था, जिसे जुलियस सीजर ने 365 दिन घोषित कर दिया और उसी के नाम पर एक महीना जुलाई बनाया गया। उसके एक सौ वर्ष पश्चात किंग अगस्ट्स के नाम पर एक और महीना अगस्ट अर्थात अगस्त भी बढ़ाया गया। चूंकि ये दोनों राजा थे, इसलिए इनके नाम वाले महीनों के दिन 31 ही रखे गए। आज के इस वैज्ञानिक युग में भी यह कितनी हास्यास्पद बात है कि लगातार दो महीने के दिनों की संख्या समान हैं, जबकि अन्य महीनों में ऐसा नहीं है। जिसे हम अंग्रेजी कैलेंडर का नौवां महीना सितम्बर कहते हैं, दसवां महीना अक्टूबर कहते हैं, ग्यारहवां महीना नवम्बर और बारहवां महीना दिसम्बर हैं। इनके शब्दों के अर्थ भी लैटिन भाषा में 7,8,9 और 10 होते हैं। भाषा विज्ञानियों के अनुसार भारतीय काल गणना पूरे विश्व में व्याप्त थी और सचमुच सितम्बर का अर्थ सप्ताम्बर था, आकाश का सातवां भाग, उसी प्रकार अक्टूबर अष्टाम्बर, नवम्बर तो नवमअम्बर और दिसम्बर दशाम्बर है।

उल्लेखनीय है कि ज्योतिष विद्या में ग्रह, ऋतु, मास, तिथि एवं पक्ष आदि की गणना भी चैत्र प्रतिपदा से ही की जाती है। मान्यता है कि नव संवत्सर के दिन नीम की कोमल पत्तियों और पुष्पों का मिश्रण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, मिश्री, जीरा और अजवाइन मिलाकर उसका सेवन करने से शरीर स्वस्थ रहता है। इस दिन आंवले का सेवन भी बहुत लाभदायक बताया गया है। माना जाता है कि आंवला नवमीं को जगत पिता ने सृष्टि पर पहला सृजन पौधे के रूप में किया था। यह पौधा आंवले का था। इस तिथि को पवित्र माना जाता है। इस दिन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है।

वसंत का उल्लास

भारतीय नववर्ष में वातावरण अत्यंत मनोहारी रहता है। केवल मनुष्य ही नहीं, अपितु जड़ चेतना नर-नाग यक्ष रक्ष किन्नर-गंधर्व, पशु-पक्षी लता, पादप, नदी नद, देवी, देव, मानव से समष्टि तक सब प्रसन्न होकर उस परम शक्ति के स्वागत में सन्नध रहते हैं। वृक्षों पर नए पत्ते आ जाते हैं। उपवनों में भी रंग- बिरंगे पुष्प दिखाई देते हैं।   

नववर्ष पर दिवस सुनहले, रात रूपहली, उषा सांझ की लाली छन-छन कर पत्तों में बनती हुई चांदनी जाली कितनी मनोहारी लगती है। शीतल मंद सुगंध पवन वातावरण में हवन की सुरभि कर देते हैं। ऐसे ही शुभ वातावरण में अखिल लोकनायक श्रीराम का अवतार होता है।

भारतीय नववर्ष वसंत का उल्लास साथ लाता है। जब भारतीय नववर्ष का प्रारम्भ होता है तो प्रकृति चहक उठती है। हमारे गौरवशाली भारत देश की बात ही निराली है। हमारे तीज-त्यौहार, व्रत, उपवास, रामनवमी, जन्माष्टमी, गृह प्रवेश, विवाह तथा अन्य शुभ कार्यों के शुभमुहूर्त आदि सभी आयोजन भारतीय कैलेंडर अर्थात हिन्दू पंचांग के अनुसार ही देखे जाते हैं। इसलिए हमारे जीवन में इसका अत्यंत महत्त्व है।

डॉ. सौरभ मालवीय

 एसोसिएट प्रोफेसर

पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग,

लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ

ईमेल - malviya.sourabh@gmail.com

मो- 8750820740

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